हेलो दोस्तों में खुशी शर्मा आज के इस लेख में आपका स्वागत करती हूँ, इसइस लेख में हम बात करेंगे Hindi Mein Alankar Kitne Prakar Ke Hote Hain, जानिए पूरी जानकारी विस्तार से इस लेख में। अलंकार हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका मतलब है किसी वाक्यांश या शब्दों को सुंदरता, गहराई, और अर्थगत उपयोग के माध्यम से सजाना। अलंकार हमें भाषा की समृद्धि और सौंदर्य समझने में मदद करते हैं। इसलिए, आइए हम जानें कि अलंकार कितने प्रकार के होते हैं अलंकार एक महत्वपूर्ण भाग है हिंदी साहित्य का।
अलंकार शब्दों या वाक्यांशों को सुंदरता, गहराई, और अर्थगत उपयोग के माध्यम से सजाने का कार्य करते हैं। अलंकार हमें भाषा की समृद्धि और सौंदर्य समझने में मदद करते हैं। इसलिए, आइए हम जानें कि अलंकार कितने प्रकार के होते हैं।
यदि आप भी अलंकारों के विषय में जानना चाहते है, तो यहाँ पर आपको अलंकार किसे कहते हैं, उसकी परिभाषा, अलंकार कितने प्रकार के होते है, उनके नाम व उद्धरण की पूरी जानकारी प्रदान की जाएगी। यह विषय स्कूली परीक्षाओ के साथ आईएएस परीक्षा के लिए भी सामान रूप से महत्वपूर्ण होता है तथा यूपीएससी परीक्षा में अनिवार्य विषय अलंकार के विषय में विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जाते है |
यह लेख पूर्ण रूप से पढने पर आप अलंकार के विषय में इतना जान जायेंगे कि आप इसका वर्णन स्वयं ऊधारण सहित कर सकते है | बिना किसी देरी के बने रहिये आज के हमारे इस ब्लॉग के साथ अंत तक।
Alankar Kitne Prakar Ke Hote Hain, अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?
अलंकार कितने प्रकार के होते हैं? (Alankar Kitne Prakar Ke Hote Hain) अलंकार का अध्ययन हिंदी व्याकरण में एक महत्वपूर्ण विषय है। इसके परिभाषा, वर्गीकरण, उदाहरण, और विविधताओं का अध्ययन, भाषा विश्लेषण के क्षेत्र में एक प्रमुख केंद्रीय बिंदु के रूप में माना जाता है। अलंकार का अध्ययन सभी शिक्षक पात्रता परीक्षाओं (TET) और शैक्षिक भर्ती परीक्षाओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जिससे इसका महत्व इन मूल्यांकन मंचों पर प्रकट होता है। आइये जाने ‘अलंकार क्या है परिभाषा, भेद, उदाहरण, प्रकार, और भी बहुत कुछ।
अलंकार किसे कहते है?
अलंकार, कविता के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्त्व होते हैं। जिस तरह से आभूषण से नारी का सौंदर्य बढ़ जाता है, उसी तरह अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है। शब्द और अर्थ की विशेषता से काव्य का शृंगार होता है, उसे ही अलंकार कहते हैं। कहा गया है – ‘अलंकरोति इति अलंकारः’ (जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।) भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, अनन्वय, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति आदि प्रमुख अलंकार हैं। इसके अलावा अन्य अलंकार भी हैं।
परिभाषा:-अलंकार का अर्थ है– सजावट करना या सजाना। अलंकार सुंदर वर्णों से बनते हैं और काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं। ‘अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है कि आभूषण, यह दो शब्दों से मिलकर बनता है- अलं + कार।
जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषणों से होती है, उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है। अलंकार शास्त्र’ में आचार्य भामह ने इसका विस्तृत वर्णन किया है। वे अलंकार सम्प्रदाय के प्रवर्तक कहे जाते हैं।
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अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?
अलंकार वह शैली है जिसमें शब्दों और वाक्यांशों को सुंदरता और अर्थगत गहराई के साथ प्रयोग किया जाता है। यह हमें भाषा की साहित्यिक और कलात्मक महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है।
अलंकार मुख्यतः तीन प्रकार के होते है,
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
1. शब्दालंकार
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द + अलंकार , जिसके दो रूप होते हैं – ध्वनी और अर्थ । ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी की जाती है । जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द का इस्तेमाल कर देने से फिर उस शब्द का अस्तित्व ही न बचे तो ऐसी स्थिति को शब्दालंकार कहते हैं । अर्थार्त जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से कोई चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार कहीं गायब हो जाता है तो ऐसी प्रक्रिया को शब्दालंकार कहा जाता है।
जैसे:-अनुप्रास अलंकार, यमक अलंकार, पुनरुक्ति अलंकार, विप्सा अलंकार, वक्रोक्ति अलंकार, शलेष अलंकार
2. अर्थालंकार
जब किसी शब्द के पर्यायवाची का प्रयोग करने से पंक्ति में ध्वनि का वही चारुत्व न रहे तब मूल शब्द के प्रयोग में शब्दालंकार होता है और जब शब्द के पर्यायवाची के प्रयोग से भी अर्थ की चारुता में अंतर न आता हो तब अर्थालंकार होता है।
जैसे:-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टांत, मानवीकरण आदि मुख्य अर्थालंकार हैं।
3. उभयालंकार
उभयालंकार- जहाँ अलंकार का चमत्कार अर्थ और शब्द दोनों में स्पष्ट हो, वहाँ उभयालंकार होता है। शब्दालंकार और अर्थालंकार का मिश्रण स्वरूप उभयालंकार के रूप में जाना जाता है।
अलंकार कितने होते हैं?
भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, आदि प्रमुख अलंकार हैं। इसके अलावा अन्य अलंकार भी हैं। उपमा आदि के लिए अलंकार शब्द का संकुचित अर्थ में प्रयोग किया गया है। व्यापक रूप में सौंदर्य मात्र को अलंकार कहते हैं और उसी से काव्य ग्रहण किया जाता है।
अलंकार के भेद
श्रेणी | उदाहरण |
---|---|
शब्दालंकार | अनुप्रास अलंकार |
यमक अलंकार | |
श्लेष अलंकार | |
अर्थालंकार | उपमा अलंकार |
रूपक अलंकार | |
उत्प्रेक्षा अलंकार | |
अतिशयोक्ति अलंकार | |
मानवीकरण अलंकार | |
उभयालंकार | – |
शब्दालंकार के प्रकार
1. अनुप्रास अलंकार:-एक या अनेक वर्णो की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति को अनुप्रास अलंकार कहते हैं ।जहाँ एक शब्द या वर्ण बार बार आता है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।अनुप्रास का अर्थ है दोहराना। जहां कारण उत्पन्न होता है अर्थात् काव्य में जहां एक ही अक्षर की आवृत्ति बार-बार होती है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:-
(अ) मधुर मृदु मंजुल मुख मुसकान।
‘म’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।
(ब) भूरी-भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया।
2. यमक अलंकार:-यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब किसी शब्द को दो या दो से अधिक प्रयोग में लाया जाए और हर बार उसका अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है।
उदाहरण:-
(अ) कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर वा पाये बौराय।।
यहाँ ‘कनक’ शब्द की दो बार आवृत्ति है। ‘कनक’ के दो अर्थ हैं- धतूरा तथा सोना, अतः यहाँ यमक अलंकार है।सजना है मुझे सजना के लिए।
(ब) सजना है मुझे सजना के लिए।
यहाँ पहले सजना का अर्थ है – श्रृंगार करना और दूसरे सजना का अर्थ – नायक शब्द दो बार प्रयुक्त है, अर्थ अलग -अलग हैं! अत: यमक अलंकार है।
3. श्लेष अलंकार:-जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ भिन्न-भिन्न आये | वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण:-
अ) माया महा ठगिनि हम जानी।
तिरगुन फाँस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।
तिरगुन– (i) रज, सत, तम नामक तीन गुण।
(ii) रस्सी (अर्थात् तीन धागों की संगत), अतः श्लेष अलंकार है।
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अर्थालंकार के प्रकार
1. उपमा अलंकार:-उपमा अर्थात् तुलना या समानता उपमा में उपमेय की तुलना उपमान से गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर की जाती है।
उदाहरण:-
(अ) हरिपद कोमल कमल से।
हरिपद (उपमेय) की तुलना कमल (उपमान) से कोमलता के कारण की गई! अत: उपमा अलंकार है!
(ब) प्रातः नभ था, बहुत गीला शंख
इस पद्यांश में ‘नभ’ की उपमा ‘शंख’ से दी जा रही है। अतः उपमा अलंकार है।
2. रूपक अलंकार:-जहां एक विषय में दूसरे विषय का तुलनात्मक उल्लेख किया जाता है, वहाँ कविता में उपयोग होने वाला अलंकार होता है या जहां विशेष गुणों की बहुत बड़ी समानता के कारण उपमेय में ही उपमान का अभेद कहा जाता है, वहां कविता में रूपक अलंकार होता है। रूपक अलंकार में गुण की बहुत बड़ी समानता को दर्शाने के लिए उपमेय और उपमान को “एक” कहा जाता है। अर्थात, उपमान को उपमेय पर प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:-
(अ) आए महंत बसंत।
यहाँ बसंत पर महंत का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
(ब) बंदौ गुरुपद पदुप परागा।
इस पद्यांश में गुरुपद में पदुम (कमल) का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
3. उत्प्रेक्षा अलंकार:-यहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है। इसमें मानो, जानो, जनु, मनु आदि शब्दों का प्रयोग होता है।
उदाहरण:-
(अ) मुख मानो चन्द्रमा है।
यहाँ मुख (उपमेय) को चन्द्रमा (उपमान) मान लिया गया है! यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है! इस अलंकार की पहचान मनु, मानो, जनु, जानो शब्दों से होती है।
(ब) सोहत ओढ़ै पीत पट स्याम सलोने गात।
मनो नीलमनि सैल पर आतप परयो प्रभात।।
अर्थात् श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर पीताम्बर ऐसा लग रहा है मानो नीलम पर्वत पर प्रभाव काल की धूप शोभा पा रही हो।
4. अतिशयोक्ति अलंकार:-अतिशयोक्ति = अतिशय + उक्ति = बढा-चढाकर कहना। जब किसी बात को बढ़ा चढ़ा कर बताया जाये, तब अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण:-
(अ) लहरें व्योम चूमती उठतीं।
यहां लहरों को आकाश चूमता हुआ दिखाकर अतिशयोक्ति का विधान किया गया है।
(ब) हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सगरी जरि गई,गए निशाचर भाग।।
इस पद्यांश में हनुमान की पूँछ में आग लगने के पहले ही सारी लंका का जलना और राक्षसों के भाग जाने का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है, अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।
5. मानवीकरण अलंकार:- जहां जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है, वहां मानवीकरण अलंकार है।
(अ) फूल हंसे कलियां मुसकाई।
यहां फूलों का हंसना, कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएं हैं, अत: मानवीकरण अलंकार है।
(ब) बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबो रहीं, ताराघट उषा नागरी।
यहाँ उषा (प्रातः) का मानवीकरण कर दिया गया है। उसे स्त्राी रूप में वर्णित किया गया है, अतः मानवीकरण
अलंकार है।
निष्कर्ष
दोस्तों आज के इस लेख में हमने आपके साथ साझा की Hindi Mein Alankar Kitne Prakar Ke Hote Hain, जानिए पूरी जानकारी विस्तार से। जैसा की इस ब्लॉग में हमने जाना अलंकार किसे कहते है, अलंकार के सारे प्रकार और उनके उदहारण और भी बहुत कुछ दोस्तों अलंकार हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका अर्थ है किसी वाक्यांश या शब्दों को सुंदरता, गहराई, और अर्थगत उपयोग के माध्यम से सजाना। हमे आशा है की आपके प्रश्नो का उत्तर आपको इस लेख में अवश्य मिलेंगे हमारा ये लेख आपके लिए उपयोगी होगा।
Hindi Mein Alankar Kitne Prakar Ke Hote Hain, जानिए पूरी जानकारी विस्तार से। ऐसे ही और ताजी खबरों के लिए हमारे साथ बने रहे हमारी वेबसाइट पर हम आपको पल-पल की Latest News आप तक पहुंचाते रहेंगे। यदि आपको हमारा यह Blog पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर करें। और ऐसी ही अन्य लेख को पढ़ने के लिए हमारे साथ जुड़े रहें।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
1. अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: अलंकार मुख्यतः तीन प्रकार के होते है-शब्दालंकार, अर्थालंकार, उभयालंकार।
2. अलंकार कितने होते हैं?
उत्तर: हिंदी मे मुख्य रूप से सात अलंकार होते है । अनुप्रास, उपमा, यमक, रूपक, श्लेष,अतिशयोक्ति और उत्प्रेरित अलंकार।
3. शब्दालंकार कितने प्रकार के होते हैं
उत्तर: शब्दालंकार के तीन भेद हैं— अनुप्रास , यमक श्लेष ।
4. अलंकार किसे कहते हैं?
उत्तर: हिंदी कविता और साहित्य में, “अलंकार” का तात्पर्य भाषा की सुंदरता और प्रभाव को अलंकृत करने और बढ़ाने के लिए विभिन्न अलंकारिक अलंकारों या साहित्यिक अलंकारों के उपयोग से है।
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