हेलो दोस्तों, आज के इस लेख में आपका स्वागत है। इस न्यू ब्लॉग पोस्ट में हम बात करेंगे Tulsidas ji Ke Ramcharitmanas Mein Kitne Kand Hain (तुलसीदास जी के रामचरितमानस में कितने काण्ड है) और उनकी विशेषता। रामचरितमानस, हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है जिसे महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में रचा था। यह ग्रंथ भगवान श्रीराम की कथा को विस्तार से वर्णित करता है और भक्ति और धर्म के माध्यम से मानवता को प्रेरित करता है। इसमें कुल मिलाकर 7 काण्ड हैं, जिनमें प्रत्येक काण्ड की अपनी विशेषता है। हम इस पोस्ट में इन काण्डों की संक्षिप्त जानकारी देंगे। बने रहिये हमारे साथ।
दोस्तों, आज के इस लेख में हम Tulsidas ji Ke Ramcharitmanas Mein Kitne Kand Hain इस विषय पर चर्चा करेंगे। रामचरितमानस एक प्रमुख हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जो गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित कथा है, जी राम के जीवन के विविध पहलुओं के बारे में बताता है, रामचरितमानस ग्रंथ तुलसीदास जी द्वारा अवधी भाषा में रचा गया था और इसके महत्वपूर्ण भाग आज भी हमारे जीवन में गहरा प्रभाव डालते हैं। चलिए, इस ग्रंथ के विभिन्न काण्डों की संख्या और उनके महत्व पर गहराई से जानकारी प्राप्त करते हैं।
Ramcharitmanas Mein Kitne Kand Hain
(Ramcharitmanas Mein Kitne Kand Hain) श्री रामचरितमानस मानव का बड़ा मार्गदर्शक है। इसमें सात काण्ड हैं जो मनुष्य को अनमोल सीख देते हैं और उसकी प्रगति के लिए मददगार होते हैं। रामचरितमानस एक हिंदी कविता संग्रह है जिसे संत तुलसीदास ने लिखा था। यह पुस्तक भगवान राम के जीवन की कहानी को हिंदी में लिखा गया है और तुलसीदास ने इससे भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। यह पुस्तक रामायण की कहानी को सरल हिंदी भाषा में प्रस्तुत करती है और लोगों को राम के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं का ज्ञान देती है।
आइये जानते है तुलसीदास जी के रामचरितमानस में कितने कांड हैं, आगे जानते है इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ के बारे में सारी जानकारी।
महान भारतीय ग्रंथ: श्री रामचरितमानस
विषय | जानकारी |
---|---|
रचना | श्रीरामचरितमानस |
अवरण | हिन्दू धर्म |
लेखक | गोस्वामी तुलसीदास |
भाषा | हिंदी की बोली अवधी |
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस एक महाकाव्य है जो 15 वीं शताब्दी में लिखा गया। गोस्वामी जी ने इसे अयोध्या में 1631 में रामनवमी के दिन आरंभ किया था। इसे लिखने में उन्हें 2 वर्ष 7 माह 26 दिन का समय लगा। श्रीरामचरितमानस की भाषा अवधी है, श्रीरामचरितमानस एक प्रसिद्ध महाकाव्य है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने १६वीं सदी में रचा। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम नामक नायक हैं और इसकी भाषा अवधी में है। यह ग्रन्थ अवधी साहित्य की महान कृति मानी जाती है और सामान्यतः तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ के रूप में भी जाना जाता है।
श्रीरामचरितमानस भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व रखता है और इसकी लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में बहुत से लोग इसे ‘रामायण’ के रूप में प्रतिदिन पढ़ते हैं। शरद नवरात्रि के दौरान इसके सुन्दर कांड का पाठ पूरे नौ दिनों तक किया जाता है। रामायण मंडलों द्वारा मंगलवार और शनिवार को इसके सुन्दरकांड का पाठ किया जाता है।
श्रीरामचरितमानस के मुख्य पात्र श्रीराम हैं, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में व्यक्त किया गया है। इसके विपरीत, महर्षि वाल्मीकि के रामायण में श्रीराम को एक आदर्श मानव के रूप में दिखाया गया है। यह आदर्श समझाता है कि जीवन को कैसे जीना चाहिए, चाहे उसमें कितने भी विघ्न क्यों न हों। प्रभु श्रीराम सर्वशक्तिमान होने के बावजूद भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनूपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों और छंदों का वर्णन किया है।
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गोस्वामी तुलसीदास: एक सरल परिचय
गोस्वामी तुलसीदास (1511 – 1623) भारतीय साहित्य के प्रमुख भक्त कवि थे। उनका प्रमुख ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ है, जो उनकी श्रेष्ठता का प्रतीक है। उन्हें महर्षि वाल्मीकि के अवतार भी माना जाता है, जो आदिकाव्य ‘रामायण’ के रचयिता थे।
‘श्रीरामचरितमानस’ की कथा रामायण से प्रेरित है। यह ब्रज भाषा में रचा गया है और उत्तर भारत में भक्तिभाव से प्रसिद्ध है। उनका और भी एक महत्वपूर्ण काव्य है, जो विनय पत्रिका कहलाता है। ‘श्रीरामचरितमानस’ को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46वाँ स्थान प्राप्त हुआ था। तुलसीदास जी स्मार्त वैष्णव थे।
गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas)
नाम | गोस्वामी तुलसीदास |
जन्म तारीख | 11 अगस्त, 1511 ई० |
मृत्यु तारीख | 03 अगस्त, 1623 ई० |
जन्म स्थान | कासगंज, उत्तर प्रदेश, भारत |
गुरु/शिक्षक | पंडित नृसिंह चौधरी |
साहित्यिक कार्य | रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि |
धर्म | हिन्दू |
तुलसीदास जी के रामचरितमानस में कितने कांड हैं?
इस महाकाव्य में रामचन्द्र के चरित्र का वर्णन किया गया है। यह रामायण का आधार माना जाता है, पर गोस्वामी जी ने राम को भगवान विष्णु का अवतार माना है।
श्री रामचरितमानस मानव के लिए एक बड़ी मार्गदर्शक पुस्तक है। इसमें सात काण्ड हैं जो मनुष्य को जीवन में उन्नति के सोपान प्रदान करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन सात काण्डों को ‘सोपान’ कहा है, क्योंकि ये रामचन्द्र जी के चरणों तक पहुंचने की सीढ़ियां हैं।रामचरितमानस को सात काण्डों में विभाजित किया गया है:-
श्रीरामचरितमानस में सात काण्ड (अध्याय) हैं:-
- बालकाण्ड
- अयोध्याकाण्ड
- अरण्यकाण्ड
- किष्किन्धाकाण्ड
- सुन्दरकाण्ड
- लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड)
- उत्तरकाणड
1. बाल काण्ड (श्रीराम की बचपन की कहानी)
अयोध्या नगरी में राजा दशरथ नामक राजा थे, जिनकी पत्नियों के नाम कौशल्या, कैकेयी, और सुमित्रा थे। सन्तान प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने अपने गुरु श्री वशिष्ठ की सलाह पर पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ को ऋषि ऋंगी ने सम्पन्न किया। अग्निदेव को खुश करने के लिए, देवदूतों ने दशरथ को खीर दी, जिसे कि चित्रकार हुसैन नक्काश और बासवान, अकबर की जयपुर रामायण से प्राप्त किया गया था।
इस आहुति के बाद, अग्निदेव स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को खीर के हविष्यपात्र दिया, जिसे उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों के साथ बाँट दिया। कौशल्या के गर्भ से राम, कैकेयी के गर्भ से भरत, और सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋषि विश्वामित्र ने राक्षसों से राक्षसों से रक्षा हेतु राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग किया। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण से मारकर समुद्र के पार भेज दिया। उसी दौरान, लक्ष्मण ने राक्षसों की सेना का संहार किया।
धनुषयज्ञ के लिए राजा जनक के निमंत्रण पर, ऋषि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गए। इस यात्रा के दौरान, राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहल्या का उद्धार किया। मिथिला में आकर, जब राम ने शिवधनुष को उठाने का प्रयास किया, तो वह टूट गया और राम ने सीता से विवाह किया। राम और सीता के विवाह के साथ ही, गुरु वशिष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्षमण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से विवाह करवाया।
2. अयोध्याकाण्ड (रामायण: राम का वनवास)
राम के विवाह के बाद राजा दशरथ ने राम को राज्याभिषेक करने का सोचा। मंथरा, जो कैकेयी की दासी थी, ने उसे प्रेरित किया। फिर कैकेयी ने दशरथ से मांग की कि राम को वनवास भेज दिया जाए और भरत को राजा बनाया जाए।
राम, सीता, और लक्ष्मण वन में गए। वहां गुह और केवट ने उनकी सहायता की। बाद में राम ने भारद्वाज मुनि से मिला। वहां से राम चित्रकूट में निवास करने चले गए।
अयोध्या में राजा दशरथ की मृत्यु के बाद भरत ने राम को वापस बुलाया। कैकेयी ने अपने किये पर पछताया। भरत और अन्य स्नेही लोगों ने राम को अयोध्या लाने का प्रस्ताव रखा, पर राम ने इसे माना नहीं।
भरत ने राम की पादुका को लेकर अयोध्या लौट आया। वहां उन्होंने उनकी पादुका को सिंहासन पर रख दिया और स्वयं नन्दिग्राम में निवास किया।
3. अरण्यकाण्ड (रामायण: संगीन यात्रा और संघर्ष)
कुछ समय बाद, राम ने चित्रकूट से यात्रा की और अत्रि ऋषि के आश्रम पहुँचे। अत्रि ने राम की प्रशंसा की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को सती पतिव्रता के बारे में समझाया। फिर राम ने आगे बढ़ते हुए शरभंग मुनि से मिला। शरभंग मुनि राम के दर्शन की इच्छा से वहाँ थे। जब राम की इच्छा पूरी हो गई, तो उन्होंने अपने शरीर को जला दिया और ब्रह्मलोक की ओर चले गए। आगे बढ़ते हुए, राम को कई जगहों पर हड्डियों के ढेर दिखाई दिए, जिसके बारे में मुनियों ने बताया कि राक्षसों ने कई मुनियों को मार डाला है और उनकी हड्डियाँ बची हैं।
राम ने वादा किया कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को राक्षस-मुक्त करेंगे। राम और आगे बढ़े और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य, और अन्य ऋषियों से मिले और फिर दण्डक वन में पहुँचे। वहाँ उन्होंने जटायु से मुलाकात की और पंचवटी में निवास किया। पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा आई और राम से प्रेम निवेदन किया। राम ने उससे कहा कि वह अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है, तो उन्होंने उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया।
लक्ष्मण ने उसके प्रेम निवेदन को नकारा और उसके नाक और कान काट लिए। शूर्पणखा ने रावण से मदद की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिए आ गया। राम ने खर-दूषण और उनकी सेना का संहार किया। इसके बाद, शूर्पणखा अपने भाई रावण से शिकायत की। रावण ने बदले के लिए मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा, जिसे सीता ने राम से मांगा। राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा के लिए आदेश दिया और वह स्वर्णमृग को मारने के लिए पीछे चले गए।
मारीच राम के हाथों मारा गया, पर मरते मरते मारीच ने राम की आवाज बना कर ‘हा लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया, जिसे सुन कर सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को राम के पास भेज दिया। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता को रावण ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। रास्ते में जटायु ने सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध किया और रावण ने तलवार के प्रहार से उसे अधमरा कर दिया।
सीता को न पाकर राम अत्यंत दुःखी हुए और विलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से मिलने पर उसने राम को रावण द्वारा किये गए अन्याय का विवरण दिया और सीता को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब कहने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और राम ने उसका अंतिम संस्कार किया। फिर राम उसकी मदद से सघन वन के भीतर सीता की खोज में आगे बढ़े। रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध किया और उसका उद्धार किया।
फिर वह शबरी के आश्रम में पहुँचे, जहाँ उसने उसके द्वारा दिए गए जूठे बेरों को उसकी भक्ति में होकर खाया। इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गए।
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4. किष्किन्धाकाण्ड (हनुमान द्वारा सीता की खोज)
सुग्रीव ने हनुमान को भेजा जानकारी लेने के लिए और राम ने उसे सुग्रीव के साथ मित्रता करवा दी। सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी कि जानकी जी मिल जाएंगी और उन्हें खोजने में सहायता देगा। राम ने बालि का वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य और उसके पुत्र अंगद को युवराज का पद दिया।
सुग्रीव ने विलास में लिप्त हो गया और वर्षा तथा शरद् ऋतु व्यतीत हो गई। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुफा में एक तपस्विनी के दर्शन हुये। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका अशोकवाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित किया।
5. सुन्दरकाण्ड (हनुमान का लंका अभियान)
हनुमान ने लंका की यात्रा की। सुरसा ने हनुमान की परीक्षा की और उसे योग्य मानकर आशीर्वाद दिया। मार्ग में हनुमान ने एक राक्षसी को मार दिया और लंका में प्रवेश किया। वहां उन्होंने विभीषण से मिली। हनुमान अशोकवाटिका में पहुँचे तो रावण ने सीता को धमकाया। रावण के चले जाने पर त्रिजटा ने सीता को सान्तवना दी। हनुमान ने सीता से मिलकर राम की मुद्रिका दी। अशोकवाटिका का विध्वंस करने के बाद हनुमान ने रावण के पुत्र अक्षय कुमार को मार दिया। फिर उन्हें नागपाश में बांध कर रावण के पास ले गए। रावण ने हनुमान को अपमानित किया, जिसपर हनुमान ने लंका को दहन कर दिया।
हनुमान सीता के पास पहुँचे और उन्हें विदा किया। फिर वे समुद्र पार होकर सुग्रीव के पास गए। हनुमान के कार्य से राम खुश हुए और समुद्रतट पर पहुँचे। विभीषण ने रावण को समझाया और राम ने उसे लंका का राजा घोषित किया। राम ने समुद्र से रास्ता मांगा, जिस पर समुद्र ने पुल बनाने का उपाय बताया।
6. लंकाकाण्ड (युद्ध और समाप्ति राम रावण के खिलाफ)
जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील भाइयों ने वानर सेना की मदद से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर का स्थापना किया, भगवान शंकर की पूजा की, और सेना सहित समुद्र के पार उतर गए। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा लगाया। पुल बनाने और समुद्र के पार जाने के समाचार से रावण को बहुत चिंता हुई। मन्दोदरी ने भी राम के प्रति रावण को शांत किया, लेकिन रावण का अहंकार नहीं गया। राम और उनकी वानरसेना ने मेरु पर्वत पर निवास किया। अंगद राम के दूत बनकर लंका में गए और रावण को राम की शरण में आने का संदेश दिया, पर रावण ने माना नहीं।
शांति के सभी प्रयास असफल होने पर युद्ध शुरू हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के बीच घोर युद्ध हुआ। लक्ष्मण को शक्तिबाण से घायल हो गया। उनके उपचार के लिए हनुमान और सुषेण वैद्य को ले आए और संजीवनी लाने के लिए भेजा। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान को रोकने के लिए कालनेमि को भेजा, जिसको हनुमान ने मार दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को लेकर वापस चला गया। मार्ग में भरत ने उन्हें राक्षस समझकर बाण मार दिया, पर बाद में वे यथार्थ को जानकर अपने बाण को वापस लंका भेज दिया।
इसी बीच, औषधि की देरी से राम चिंतित हो गए। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गया और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण ठीक हो गए। रावण ने युद्ध के लिए कुम्भकर्ण को उठाया। कुम्भकर्ण ने भी राम की शरण में जाने की कोशिश की, पर युद्ध में उन्होंने अंत में राम के हाथों मारा गया। लक्ष्मण ने मेघनाद के साथ युद्ध करके उसका वध किया। राम और रावण के बीच कई युद्ध हुए, और अंत में रावण को राम ने मार डाला। विभीषण को लंका का राज्य सौंपकर राम, सीता, और लक्ष्मण के साथ पुष्पकविमान पर चढ़कर अयोध्या के लिए निकले।
7. उत्तरकाण्ड (राम, सीता, लक्ष्मण और वानरसेना के साथ अयोध्या वापसी)
राम कथा का अंतिम अध्याय उत्तरकाण्ड है, जिसमें राम, सीता, लक्ष्मण और सभी वानरों के साथ अयोध्या वापस पहुंचते हैं। राम का भव्य स्वागत किया जाता है, और सभी में आनंद और हर्ष की भावना होती है। राम को राज्याभिषेक किया जाता है, और वेदों और भगवान शिव की स्तुति होती है। सभी अभ्यागतों का विदाई दिया जाता है। राम ने प्रजा को उपदेश दिया और प्रजा ने अपनी कृतज्ञता प्रकट की। उनके दो दो पुत्रों की भी जन्म होती है। इसके साथ ही, रामराज्य का उत्कृष्ट उदाहरण सामने आता है।
इसके अलावा, गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकाण्ड में विभिन्न विषयों का विस्तृत वर्णन किया है, जैसे कि श्री राम-वशिष्ठ संवाद, नारद जी का अयोध्या में रामचन्द्र जी की स्तुति, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह, गरुड़ जी और काकभुशुण्डि जी के संवाद, ज्ञान-भक्ति के महान विषय, और गरुड़ के सात प्रश्न और काकभुशुण्डि जी के उत्तर। इसके बाद, आदिकवि वाल्मीकि जी ने अपने रामायण में उत्तरकाण्ड में कई महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण दिया है, जैसे कि रावण और हनुमान के जन्म, सीता का निर्वासन, लक्ष्मण का विदाय, और राम के महाप्रयाण के बाद उनके स्वर्गोत्थान का वर्णन। उत्तरकाण्ड के विवाद के बावजूद, यह एक महत्वपूर्ण अंश है जो रामायण की पूरी कहानी को पूरा करता है।
निष्कर्ष
दोस्तों आज के इस लेख में हमने चर्चा की Tulsidas ji Ke Ramcharitmanas Mein Kitne Kand Hain यह लेख रामचरितमानस के कांडो के महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन करता है, जो रामायण की कथा की जानकारी देता है। इस लेख में हमने आपको राम, सीता, लक्ष्मण, और वानरसेना के साथ अयोध्या वापसी का वर्णन है, 7 कांडो की पूरी जानकारी विस्तार से दी है, जहां उनका स्वागत भव्यता से किया जाता है। तुलसीदास जी ने राम-वशिष्ठ संवाद, नारद जी का आगमन और रामचन्द्र जी की स्तुति का वर्णन किया है। इसके अलावा, वाल्मीकि जी ने रावण और हनुमान के जन्म, सीता का निर्वासन, लक्ष्मण का विदाय, और राम के महाप्रयाण का विवरण किया गया है।
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
1. रामायण के 7 कांड कौन से हैं?
उत्तर: सात काण्डों के नाम हैं – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड।
2. रामायण का पहला कांड कौन सा है?
उत्तर: बालकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है।
3. रामायण में कौन सा कांड नहीं पढ़ा जाता है?
उत्तर: वाल्मीकि रामायण तथा अध्यात्म रामायण के सप्तम उत्तरकाण्ड में ही लव-कुश कथा है। अलग से लव-कुश काण्ड नहीं है।
4. रामायण का पुराना नाम क्या है?
उत्तर: बाल्मिकी कृत रामायण का नाम तो रामायण ही है और तुलसी कृत रामायण का नाम रामचरित मानस है।
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