Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain, रस कितने प्रकार के होते हैं?

By Khushi Sharma

Published on:

नमस्ते दोस्तों, मैं खुशी शर्मा आप सभी का मेरे इस लेख में स्वागत है। आज के इस लेख में हम बात करेंगे एक महत्वपूर्ण विषय पर Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain और कौन-कौन से। जैसा कि हम सब जानते हैं कि हिंदी व्याकरण से रस का मतलब क्या है और इसके कितने प्रकार होते हैं, और ये सवाल बहुत से स्कूल और कॉलेजों की परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। अगर आप भी इसी सवाल के उत्तर ढूंढ़ रहे हैं तो आप सही लेख में हैं। बने रहें हमारे साथ और जानिए रस के विभिन्न प्रकारों के बारे में।

रस हिंदी व्याकरण और हिंदी साहित्य में पढ़ाए जाने वाला एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। जैसा कि आचार्य भरतमुनि ने कहा है – विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः- अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारिभाव के मेल से रस की उत्पत्ति होती है। इसका मतलब यह है कि विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से दयालु व्यक्ति के मन में उपस्थित ‘रति’ आदि स्थायी भाव ‘रस’ के स्वरूप में बदलता है। रस के बारे में और अधिक जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें।

Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain, जाने।

Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain

जब हम कोई कविता सुनते या पढ़ते हैं या किसी दृश्य कविता को देखते हैं, और हमें एक अद्वितीय सुख महसूस होता है, तो उसे काव्य में ‘रस’ कहा जाता है। जिस भाव से यह अनुभव होता है, उसे हम ‘रस’ कहते हैं, यह भाव स्थायी होता है। रस, छंद और अलंकार – ये सभी काव्य के महत्वपूर्ण अंग हैं। प्राचीन काव्यशास्त्रियों के अनुसार रसों की संख्या नौ है, जबकि आधुनिक काव्यशास्त्रियों के अनुसार इनकी संख्या ग्यारह है।

रस किसे कहते है?

‘रस’ शब्द ‘रस्’ धातु और ‘अच्’ प्रत्यय के मेल से बना है। संस्कृत वाङ्गमय में रस की उत्पत्ति ‘रस्यते इति रस’ इस प्रकार की गई है, अर्थात् जिससे आस्वाद अथवा आनन्द प्राप्त हो वही रस है। रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। काव्य को पढ़ने या सुनने से अथवा चिन्तन करने से जिस अत्यंत आनन्द का अनुभव होता है, उसे ही रस कहा जाता है।

रस की परिभाषा

Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain

काव्य को सुनने या पढ़ने में उसमें वर्णित वस्तु या विषय का शब्द चित्र में बनता है। इससे मन को अलौकिक आनंद प्राप्त होता है। इस आनंद और इसकी अनुभूति को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है, यही काव्य में रस कहलाता है।

किसी हास्यपूर्ण कविता को सुनकर हँसी से मन में आनंद उत्पन्न होता है। किसी करुण कथा या कविता को सुनकर ह्रदय में दया का स्त्रोत उमड़ आता है, यह रस का अनुभूति होती है।

रस के कितने अंग या अवयव होते हैं?

रस के मुख्यत: चार अंग या अवयव होते हैं:-

  • स्थायीभाव
  • विभाव
  • अनुभाव
  • व्यभिचारी अथवा संचारी भाव

Read Our More Article: Baisakhi Kitne Tarikh Ko Hai, बैसाखी कितने तारीख को है?

Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain

1. स्थायी भाव

परिभाषा- स्थायी भाव का मुख्य भाव है – प्रमुख भाव। रस की स्थिति तक पहुंचने वाले भाव को प्रमुख भाव कहा जाता है। स्थायी भाव कविता या नाटक में शुरुआत से अंत तक बना रहता है। स्थिर भावों की संख्या नौ मानी जाती है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थायी भाव होता है। इसलिए, रसों की संख्या भी ‘नौ’ है, जिसे ‘नवरस’ कहा जाता है। मूलतः नौ रस माने जाते हैं। बाद में आचार्यों ने दो और भावों (वात्सल्य और भगवद् विषयक रति) को स्थायी भाव की मान्यता दी। इस तरह, स्थिर भावों की संख्या ग्यारह तक पहुंचती है, जिससे रसों की संख्या भी ग्यारह होती है।

रस और उनके स्थायी भाव का संबंध

रसस्थायी भाव
श्रंगाररति
हास्यहास्य
करुणशौक
रौद्रक्रोध
अद्भुतविस्मय
वात्सल्यस्नेह
वीभत्सघृणा
शांतनिर्वेद
वीरउत्साह
भक्ति रसअनुराग
#Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain

2. विभाव

परिभाषा- भाव का अर्थ है, ‘कारण’। जो कारण हृदय में स्थित स्थायी भाव का उत्पन्न होने में सहायक होते हैं, उन्हें विभाव कहा जाता है।

विभाव के दो प्रकार होते है:-

  • आधार विभाव– जिसके कारण आश्रम के दिल में स्थायी भाव उत्तेजित होता है। इसे आधार विभाव कहते हैं।
  • प्रेरक विभाव– ये आधार विभाव के सहायक और अनुसरणीय होते हैं। प्रेरक में आधार के क्रियाकलाप और बाह्य माहौल- दो तत्त्व आते हैं, जो स्थायी भाव को और अधिक प्रेरित, जागृत और उत्साही बना देते हैं।

3. अनुभाव

परिभाषा- आधार के प्रयास (कोशिश करने के लिए, इच्छा) उद्दीपन के अंतर्गत होते हैं, जबकि आश्रय के प्रयास अनुभव के अंतर्गत होते हैं।

अनुभाव चार प्रकार के होते हैं:

  • शारीरिक (कायिक)– शरीर के कार्यों से प्रकट होते हैं।
  • वाचिक– वाणी से प्रकट होते हैं।
  • आहार्य– वस्त्र, आभूषण से प्रकट होते हैं।
  • सात्विक– सात्विक योग से उत्पन्न वे अनुभव जिन पर हमारा वश नहीं होता, सात्विक अनुभव कहे जाते हैं। इनकी संख्या आठ है – स्वेद, कम्प, रोमांच, स्तम्भ, स्वरभंग, अश्रु, वैवर्ण्य, प्रलाप आदि।

4. संचारी भाव अथवा व्यभिचारी भाव 

परिभाषा- स्थायी भाव को बढ़ाने वाले संचारी भाव कहलाते हैं। ये सभी रसों में पाए जाते हैं, इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। इनकी संख्या 33 मानी गई है।

Read Our More Article: Software Kitne Prakar Ke Hote Hain, सॉफ्टवेयर कितने प्रकार के होते हैं?

रस के कितने प्रकार होते है?

Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain

रस के ग्यारह प्रकार (भेद) होते है- (1) शृंगार रस (2) हास्य रस (3) करूण रस (4) रौद्र रस (5) वीर रस
(6) भयानक रस (7) वीभत्स रस (8) अदभुत रस (9) शान्त रस (10) वात्सल्य रस (11) भक्ति रस ।

रसो के प्रकार, परिभाषा, उदाहरण।

1. शृंगार रस

नायक और नायिका के मधुर संवाद और प्रेम से भरी आँखों को श्रृंगार रस कहा जाता है। श्रृंगार रस को ‘रसराज’ या ‘रसपति’ भी कहा जाता है। इसका मूल भाव होता है नायक और नायिका के दिल में प्रेम का अद्भुत रूप स्थित होना। जब रस उन्हीं अवस्थाओं में पहुंचता है, तो वह श्रृंगार रस कहलाता है। इसके अंतर्गत सौंदर्य, प्राकृतिकता, सुंदर वातावरण, वसंत ऋतु, पक्षियों का गायन आदि के बारे में विवरण यात्रियों को भाया जाता है। श्रृंगार रस – इसका मूल भाव प्रेम है।

उदाहरण-

कहत नटत रीझत क्तिझत, यमलत क्तिलत लयजयात,
भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात।।

2. हास्य रस

हास्य रस मनोरंजनीय होता है। यह रस नव रसों के अंतर्गत सबसे आनंदमय और सुखद रस होता है। हास्य रस का स्थायी भाव हंसी होता है। जब किसी व्यक्ति की वेशभूषा, वाणी या व्यवहार देखकर मन में प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है, तो उससे हंसी की उत्पत्ति होती है, और इसे हास्य रस कहा जाता है।

उदाहरण-

बरतस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय,

सौंह करै भौंहन हंसै दैन कहै नटिं जाय।।

3. करूण रस

इसका स्थायी भाव शोक (दुःख) होता है। इस रस में जब कोई अपने का नाश या दूरी, वियोग या प्रेमी से सदैव वियोग होने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है, उसे करुण रस कहते हैं। यद्यपि वियोग शृंगार रस में भी दुःख का अनुभव होता है, लेकिन वहाँ पर दूर जाने वाले से फिर से मिलने की आशा बनी रहती है। अतः जहाँ पर फिर से मिलने की आशा समाप्त हो जाती है, करुण रस कहलाता है। इसमें अधिकांश श्वास, छाती पीटना, रोना, भूरम पर रोना आदि का भाव व्यक्त होता है। या किसी व्यक्ति के मृत्यु या वियोग से जो दुःख उत्पन्न होता है, उसे करुण रस कहते हैं।

उदाहरण-

रही रोती हाय, शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के, ग्लायन,

त्रास, वेदना – जब मुक्तित, शाप कथा वह कह न सके।।

4. रौद्र रस

इसका स्थायी भाव क्रोध होता है। जब किसी व्यक्ति या प्राणी द्वारा दूसरे का अपमान करने या अपने आध्यात्मिक गुरु या गुरुजन की यथार्थ धार्मिकता से जो क्रोध उत्पन्न होता है, उसे रौद्र रस कहते हैं। इसमें क्रोध के कारण मुंह लाल हो जाना, दंतों का यपासना, शस्त्र चलाना, भौआहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होतेहैं।

काव्यगत रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में शृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, इसलिए उनसे अन्य रसों की उत्पत्ति बताई गई है।

उदाहरण-

श्रीकृष्ण के सुन वचन अजुयन वीर से जलने लगे,

सब शील अपना भूल कर करतल युगल मिलने लगे॥

संसार देख अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े,

करते हुए यह घोषणा वे हो गए विकर्ण ड़ी॥

5. वीर रस

जब किसी रचना या वाक्यांश से वीरता जैसे स्थायी भाव का अनुभव होता है, तो उसे वीर रस कहा जाता है। इस रस के अंतर्गत जब युद्ध या कोई कठिन कार्य करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना उत्पन्न होती है, उसे ही वीर रस कहते हैं। इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, यश प्राप्त करने आदि की भावना प्रकट होती है। इसका स्थायी भाव उत्साह होता है।

उदाहरण-

बुंदेले हर बोल के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

जूझ लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।।

6. भयानक रस

जब किसी भयानक या दुर्भावनापूर्ण व्यक्ति या वस्तु को याद करने या उससे संबंधित विचार करने या किसी दुखद घटना का स्मरण करने से मन में उत्पन्न होने वाली व्याकुलता या परेशानी को हम भय कहते हैं। इस भय के उत्पन्न होने से यजस रस का अनुभव होता है जिसे हम भयानक रस कहते हैं। इसके अंतर्गत कम्पन, पसीना छूटना, मुंह सूखना, याचना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। इसका स्थायी भाव भय होता है।

उदाहरण –

अक्तिल यौवन के रंग उभार, हायरों के यहलाते क्रूर काल,

काले कुचों के चकनाचूर, व्याघ्र, किंचुली, चुंड़ी, यहां सब डर।।

7. वीभत्स रस

इसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है। घृणित वस्तुओं, घृणित चीजों या घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में विचार करके या उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या बीवाहट ही वीभत्स रस को पुष्ट करती है। दूसरे शब्दों में, वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है।

उदाहरण –

रक्त-मांस के सड़े पंक से उमड़ रही है,

महाघोर दुर्गन्ध, रुद्ध हो उठती श्वासा। 

तैर रहे गल अस्थि-खण्डशत, रुण्डमुण्डहत,

कुत्सित कृमि संकुल कर्दम में महानाश के।।

8. अदभुत रस

जब हमें कोई अद्भुत वस्तु, व्यक्ति अथवा कार्य को देखकर आश्चर्य होता है, तब उस रस को अद्भुत रस कहा जाता है। 

उदाहरण –

एक अचम्भा देख्यौ रे भाई,

ठाढ़ा सिंह चरावै गाई।

जल की मछली तरुबर ब्याई,

पकड़ि बिलाई मुरगै खाई।।

9. शान्त रस

वैराग्य भावना के उत्पन्न होने अथवा संसार से असंतोष होने पर शान्त रस की क्रिया उत्पन्न होती है। 

उदाहरण –

बुद्ध का संसार-त्याग,

क्या भाग रहा हूँ भार देख

 तू मेरी ओर निहार देख,

मैं त्याग चला निस्सार देख।।

10. वात्सल्य रस

अधिकांश गुरुओं ने वात्सल्य रस को श्रृंगार रस के अंतर्गत स्थान दिया है, लेकिन साहित्य में अब वात्सल्य रस को स्वतंत्र माना जाता है।

उदाहरण –

यसोदा हरि पालने झुलावै।

हलरावैं दुलरावैं, जोइ-सोई कछु गावैं । 

जसुमति मन अभिलाष करैं।

कब मेरो लाल घुटुरुवन रेंगैं, 

कब धरनी पग द्वैक घरै। 

11. भक्ति रस

जब हम आदर्शनीय देवता या भगवान की ओर प्रेम या आस्था बढ़ाने लगते हैं, उनके भजन-कीर्तन में खो जाते हैं, तो उस समय भक्ति रस का अनुभव होता है।

उदाहरण –

अुँसुवन जल यसृंची-यसृंची प्रेम-बेयल बोई

मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई

निष्कर्ष

आज के इस लेख में हमने चर्चा की Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain, (रस कितने प्रकार के होते हैं?) रस हिंदी व्याकरण और हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण विषय है। हाल ही में शुरू हुई स्कूल, कॉलेजों की परीक्षाओं में अक्सर इस तरह के प्रश्न आते हैं। जिनके बारे में आज हमने इस लेख में बताया है। रस क्या होता है, रस के प्रकार और उदाहरण सहित विस्तार से पूरी जानकारी आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है। आशा है कि आज का मेरा यह ब्लॉग आप लोगों के लिए उपयोगी होगा।

Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain, (रस कितने प्रकार के होते हैं?) ऐसे ही और ताजी खबरों के लिए हमारे साथ बने रहे हमारी वेबसाइट पर हम आपको पल-पल की Latest News आप तक पहुंचाते रहेंगे। यदि आपको हमारा यह Blog पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर करें। और ऐसी ही अन्य लेख को पढ़ने के लिए हमारे साथ जुड़े रहें।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)

1. रस के कितने भेद हैं?

उत्तर: रस के ग्यारह भेद हैं।

2. रस की संख्या कितनी है?

उत्तर: ‘नाट्यशास्त्र’ में भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी है- श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत। दण्डी ने भी आठ रसों का उल्लेख किया है।

3. रस के अंग कितने होते हैं?

उत्तर: रस हिंदी व्याकरण के 4 अंग होते हैं- (1) स्थायी भाव, (2) विभाव, (3) अनुभाव, (4) संचारी भाव

 4. रस क्या होता है? 

उत्तर: रस’ शब्द रस् धातु और अच् प्रत्यय के संयोग से बना है। संस्कृत वाङ्गमय में रस की उत्पत्ति ‘रस्यते इति रस’ इस प्रकार की गयी है अर्थात् जिससे आस्वाद अथवा आनन्द प्राप्त हो वही रस है।

READ MORE: जानें नवरात्रि में कन्या भोज करवाने के महत्व।

Khushi Sharma

Dosto, Mera Naam Khushi Sharma hai me 2 Years se blogging kar rahi hu , aur ye meri website kitne.in , ispe me sabhi aise question ka answer dena chahti hu jisme kitnee word aata hai, Aapko mera Blog Acha laga ho to apne dosto ke sath share jarur Kare Thank you.

Related Post

Leave a Comment